।।दोहा।।
मासवैशाख कृतिका युत, हरण महीको भार।
शुक्लचतुर्दशी सोम दिन, लियोनरसिंह अवतार।।
धन्यतुम्हारो सिंह तनु, धन्यतुम्हारो नाम।
तुमरेसुमरन से प्रभु, पूरनहो सब काम।।
॥ चौपाई ॥
नरसिंहदेव में सुमरों तोहि धन बल विद्या दानदे मोहि।।1।।
जय-जय नरसिंह कृपाला करोसदा भक्तन प्रतिपाला।।2।।
विष्णुके अवतार दयाला महाकालकालन को काला।।3।।
नामअनेक तुम्हारो बखानो अल्पबुद्धि में ना कछुजानो।।4।।
हिरणाकुशनृप अति अभिमानीतेहिके भार मही अकुलानी।।5।।
हिरणाकुशकयाधू के जाये नामभक्त प्रहलाद कहाये।।6।।
भक्तबना बिष्णु को दासा पिताकियो मारन परसाया।।7।।
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा अग्निदाहकियो प्रचंडा।।8।।
भक्तहेतु तुम लियो अवतारा दुष्ट-दलन हरण महिभारा।।9।।
तुमभक्तन के भक्त तुम्हारे प्रह्लादके प्राण पियारे।।10।।
प्रगटभये फाड़कर तुम खम्भा देखदुष्ट-दल भये अचंभा।।11।।
खड्गजिह्व तनु सुंदर साजा ऊर्ध्वकेश महादृष्ट विराजा।।12।।
तप्तस्वर्ण सम बदन तुम्हारा को वरने तुम्हरो विस्तारा।।13।।
रूपचतुर्भुज बदन विशाला नख जिह्वा है अति विकराला।।14।।
स्वर्णमुकुट बदन अति भारी काननकुंडल की छवि न्यारी।।15।।
भक्तप्रहलाद को तुमने उबारा हिरणाकुश खल क्षण महमारा।।16।।
ब्रह्मा, बिष्णु तुम्हें नित ध्यावे इंद्र-महेश सदा मनलावे।।17।।
वेद-पुराण तुम्हरो यश गावे शेषशारदा पारन पावे।।18।।
जो नर धरो तुम्हरोध्याना ताकोहोय सदा कल्याना।।19।।
त्राहि-त्राहि प्रभु दु:ख निवारो भव बंधन प्रभु आपही टारो।।20।।
नित्यजपे जो नाम तिहारा दु:ख-व्याधि होनिस्तारा।।21।।
संतानहीनजो जाप कराये मन इच्छित सो नर सुतपावे।।22।।
बंध्यानारी सुसंतान को पावे नर दरिद्र धनी होई जावे।।23।।
जो नरसिंह का जाप करावे ताहिविपत्ति सपने नहीं आवे।।24।।
जो कामना करे मन माही सब निश्चय सो सिद्ध हुईजाही।।25।।
जीवनमैं जो कछु संकटहोई निश्चयनरसिंह सुमरे सोई।।26।।
रोगग्रसित जो ध्यावे कोई ताकिकाया कंचन होई।।27।।
डाकिनी-शाकिनी प्रेत-बेताला ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला।।28।।
प्रेत-पिशाच सबे भय खाए यम के दूत निकटनहीं आवे।।29।।
सुमरनाम व्याधि सब भागे रोग-शोक कबहूं नहींलागे।।30।।
जाकोनजर दोष हो भाई सो नरसिंह चालीसा गाई।।31।।
हटेनजर होवे कल्याना बचनसत्य साखी भगवाना।।32।।
जो नर ध्यान तुम्हारोलावे सो नर मन वांछितफल पावे।।33।।
बनवाएजो मंदिर ज्ञानी हो जावे वह नरजग मानी।।34।।
नित-प्रति पाठ करे इकबारा सो नर रहे तुम्हाराप्यारा।।35।।
नरसिंहचालीसा जो जन गावे दु:ख-दरिद्र ताकेनिकट न आवे।।36।।
चालीसाजो नर पढ़े-पढ़ावे सो नर जग मेंसब कुछ पावे।।37।।
यह श्री नरसिंह चालीसा पढ़ेरंक होवे अवनीसा।।38।।
जो ध्यावे सो नर सुखपावे तोहीविमुख बहु दु:खउठावे।।39।।
‘शिवस्वरूपहै शरण तुम्हारी हरोनाथ सब विपत्ति हमारी’।।40।।
।।दोहा।।
चारोंयुग गायें तेरी महिमा अपरंपार।
निजभक्तनु के प्राण हितलियो जगत अवतार।।
नरसिंहचालीसा जो पढ़े प्रेममगन शत बार।
उस घर आनंद रहेवैभव बढ़े अपार।।
(इतिश्री नरसिंह चालीसा संपूर्णम्)
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