।।दोहा।।
सिद्धसमूह नमों सदा, अरुसुमरूं अरहन्त।
निरआकुल निर्वांच्छ हो, गए लोकके अंत ॥
मंगलमयमंगल करन, वर्धमान महावीर।
तुमचिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भवपीर ॥
॥ चौपाई ॥
जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञानउजागर।
शांतछवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी।
कोटिभानु से अति छबिछाजे, देखत तिमिर पापसब भाजे।
महाबलीअरि कर्म विदारे, जोधामोह सुभट से मारे।
कामक्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषायभगाया।
रागीनहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी।
प्रभुतुम नाम जगत मेंसाँचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा।
राक्षसयक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भयकोई न लागे।
महाशूल को जो तनधारे, होवे रोग असाध्यनिवारे।
व्यालकराल होय फणधारी, विषको उगल क्रोध करभारी।
महाकालसम करै डसन्ता, निर्विषकरो आप भगवन्ता।
महामत्तगज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझेपुकारै।
फारडाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हेप्रभु तुही भगावै।
होकरप्रबल अग्नि जो जारै, तुमप्रताप शीतलता धारै।
शस्त्रधार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।
पवनप्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभुतुम हरौ होय भयचोरा।
झारखण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।
वज्रपातकरि घन गरजावै, मूसलधारहोय तड़कावै।
होयअपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना।
बंदीगृहमें बँधी जंजीरा, कठसुई अनि में सकलशरीरा।
राजदण्डकरि शूल धरावै, ताहिसिंहासन तुही बिठावै।
न्यायाधीशराजदरबारी, विजय करे होयकृपा तुम्हारी।
जहरहलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभुकरो तुरन्ता।
चढ़ेजहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आपकरन्ता।
एक सहस वसु तुमरेनामा, जन्म लियो कुण्डलपुरधामा।
सिद्धारथनृप सुत कहलाए, त्रिशलामात उदर प्रगटाए।
तुमजनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।
इन्द्रने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरीसुमेर कियो अभिषेखा।
कामादिकतृष्णा संसारी, तज तुम भएबाल ब्रह्मचारी।
अथिरजान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी।
शांतभाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे।
जड़-चेतन त्रय जगके सारे, हस्त रेखवत् समतू निहारे।
लोक-अलोक द्रव्य षटजाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना।
पशुयज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा।
अनेकांतअपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा।
पंचमकाल विषै जिनराई, चांदनपुरप्रभुता प्रगटाई।
क्षणमें तोपनि बाढि-हटाई, भक्तनके तुम सदा सहाई।
मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता।
।।सोरठा।।
करेपाठ चालीस दिन नित चालीसहिंबार।
खेवैधूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीरअगार ॥
जनमदरिद्री होय अरु जिसकेनहिं सन्तान।
नामवंश जग में चलेहोय कुबेर समान ॥
श्री महावीर चालीसा ~ Shri Mahavir Chalisa पीडीएफ हिंदी में प्राप्त करें
यह भी पढ़ें
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-4(ज्ञानकर्मसंन्यासयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-4
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-5(कर्मसंन्यासयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-5
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-6(आत्मसंयमयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-6
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-7( ज्ञानविज्ञानयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-7
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-8( अक्षरब्रह्मयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-8
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-9(राजविद्याराजगुह्ययोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-9
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-10(विभूतियोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-10
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-11(विश्वरूपदर्शनयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-11
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-12( भक्तियोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-12
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-13(क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-13
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-14( गुणत्रयविभागयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-14
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-15( पुरुषोत्तमयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-15
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-16( दैवासुरसम्पद्विभागयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-16
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-17( श्रद्धात्रयविभागयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-17
- श्रीमद भागवत गीता अध्याय-18(मोक्षसंन्यासयोग) ~ Shreemad Bhagvad Geeta Adhyay-18