।।दोहा।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीननके दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेवप्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहुकृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई ॥
जयतिजयति शनिदेव दयाला।
करतसदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारिभुजा, तनु श्याम विराजै।
माथेरतन मुकुट छबि छाजै॥
परमविशाल मनोहर भाला।
टेढ़ीदृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डलश्रवण चमाचम चमके।
हियमाल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूलकुठारा।
पल बिच करैं अरिहिंसंहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानुपुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्नह्वैं जाहीं।
रंकहुँराव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहूतृण होई निहारत।
तृणहूको पर्वत करि डारत॥
राजमिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँकी मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँमें मृग कपट दिखाई।
मातुजानकी गई चुराई॥
लखनहिंशक्ति विकल करिडारा।
मचिगादल में हाहाकारा॥
रावणकी गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियोकीट करि कंचन लंका।
बजिबजरंग बीर की डंका॥
नृपविक्रम पर तुहि पगुधारा।
चित्रमयूर निगलि गै हारा॥
हारनौलखा लाग्यो चोरी।
हाथपैर डरवायो तोरी॥
भारीदशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिंघर कोल्हू चलवायो॥
विनयराग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्रनृप नारि बिकानी।
आपहुंभरे डोम घर पानी॥
तैसेनल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गईपानी॥
श्रीशंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवतीको सती कराई॥
तनिकविलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुतसीसा॥
पाण्डवपर भै दशा तुम्हारी।
बचीद्रौपदी होति उघारी॥
कौरवके भी गति मतिमारयो।
युद्धमहाभारत करि डारयो॥
रविकहँ मुख महँ धरितत्काला।
लेकरकूदि परयो पाताला॥
शेषदेव-लखि विनती लाई।
रविको मुख ते दियोछुड़ाई॥
वाहनप्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुकसिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहतपुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृहआवैं।
हय ते सुख सम्पतिउपजावैं॥
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंहसिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुकबुद्धि नष्ट कर डारै।
मृगदे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरीआदि होय डर भारी॥
तैसहिचारि चरण यह नामा।
स्वर्णलौह चाँदी अरु तामा॥
लौहचरण पर जब प्रभुआवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्टकरावैं॥
समताताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्णसर्व सर्व सुख मंगलभारी॥
जो यह शनि चरित्रनित गावै।
कबहुंन दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुतनाथ दिखावैं लीला।
करैंशत्रु के नशि बलिढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवतशनि ग्रह शांति कराई॥
पीपलजल शनि दिवस चढ़ावत।
दीपदान दै बहु सुखपावत॥
कहतराम सुन्दर प्रभु दासा।
शनिसुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
।।दोहा।।
पाठशनिश्चर देव को, कीहों ‘भक्त’ तैयार।
करतपाठ चालीस दिन, हो भवसागरपार॥
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