।।दोहा।।
दाहिनेभीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए।
बाईंओर सतची नेत्रों कोचैन दीवलए।
भूरदेव महारानी के सेवक पहरेदार।
मांशकुंभारी देवी की जागमई जे जे कार।।
जे जे श्री शकुंभारीमाता। हर कोई तुमकोसिष नवता।।
गणपतिसदा पास मई रहते।विघन ओर बढ़ा हरलेते।।
हनुमानपास बलसाली। अगया टुंरी कभीना ताली।।
मुनिवियास ने कही कहानी।देवी भागवत कथा बखनी।।
छविआपकी बड़ी निराली। बढ़ाअपने पर ले डाली।।
अखियोमई आ जाता पानी।एसी किरपा करी भवानी।।
रुरूडेतिए ने धीयां लगाया।वार मई सुंदर पुत्राथा पाया।।
दुर्गमनाम पड़ा था उसका।अच्छा कर्म नहीं थाजिसका।।
बचपनसे था वो अभिमानी।करता रहता था मनमानी।।
योवांकी जब पाई अवस्था।सारी तोड़ी धर्म वेवस्था।।
सोचाएक दिन वेद छुपालूं। हर ब्रममद कोदास बना लूं।।
देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मईही आएगे।।
विष्णुशिव को छोड़ा उसने।ब्रह्माजी को धीयया उसने।।
भोजनछोड़ा फल ना खाया।वायु पीकेर आनंद पाया।।
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया।संत भाव हो वचनसुनाया।।
चारोवेद भक्ति मई चाहू। महिमामई जिनकी फेलौ।।
ब्डब्रहाम्मा वार दे डाला।चारों वेद को उसनेसंभाला।।
पाईउसने अमर निसनी। हुआप्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसेही वार पाकर आया।अपना असली रूप दिखाया।।
धर्मधूवजा को लगा मिटाने।अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।
बिनावेद ऋषि मुनि थेडोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अंबारने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहिथे बोले।।
सागरनदी का सूखा पानी।कला दल-दल कहेकहानी।।
पत्तेबी झड़कर गिरते थे। पासु ओरपाक्सी मरते थे।।
सूरजपतन जलती जाए। पीनेका जल कोई नापाए।।
चंदाने सीतलता छोड़ी। समाए ने भीमर्यादा तोड़ी।।
सभीडिसाए थे मतियाली। बिखरगई पूज की तली।।
बिनावेद सब ब्रहाम्मद रोए।दुर्बल निर्धन दुख मई खोए।।
बिनाग्रंथ के कैसे पूजन।तड़प रहा था सबकाही मान।।
दुखीदेवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।
मा ने अधभूत दर्शदिखाया। सब नेत्रों सेजल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।
एक हाथ मई अन्नभरा था। फल भीदूजे हाथ धारा था।।
तीसरेहाथ मई तीर धारलिया। चोथे हाथ मईधनुष कर लिया।।
दुर्गमरक्चाश को फिर मारा।इस भूमि का भारउतरा।।
नदियोंको कर दिया समंदर।लगे फूल-फल बागके अंदर।।
हारे-भरे खेत लहराई।वेद ससत्रा सारे लोटाय।।
मंदिरोमई गूंजी सांख वाडी। हर्षितहुए मुनि जान पड़ी।।
अन्न-धन साक कोदेने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।।
नो दिन खड़ी रहीमहारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी।।
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