II भजन II
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे,
मधुवन मोहिं पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो,
साँझ परे घर आयो ॥
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो…
मैं बालक बहिंयन को छोटो,
छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं,
बरबस मुख लपटायो ॥
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो…
तू जननी मन की अति भोरी,
इनके कहे पतिआयो ।
यह लै अपनी लकुटि कमरिया,
बहुतहिं नाच नचायो ।
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो…
जिय तेरे कछु भेद उपजि है,
जानि परायो जायो ॥
सूरदास तब बिहँसि जसोदा,
लै उर कंठ लगायो ॥
मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो…
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