॥ चौपाई ॥
जयति-जयति जय ललितेमाता। तव गुण महिमाहै विख्याता।।
तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।।
तू कल्याणी कष्ट निवारिणी। तूसुख दायिनी, विपदा हारिणी।।
मोहविनाशिनी दैत्य नाशिनी। भक्त भाविनी ज्योतिप्रकाशिनी।।
आदिशक्ति श्री विद्या रूपा।चक्र स्वामिनी देह अनूपा।।
हृदयनिवासिनी-भक्त तारिणी। नानाकष्ट विपति दल हारिणी।।
दश विद्या है रूप तुम्हारा।श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा।।
धूमा, बगला, भैरवी, तारा। भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।।
षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी। ललितेशक्ति तुम्हारी संगी।।
ललितेतुम हो ज्योतित भाला।भक्तजनों का काम संभाला।।
भारीसंकट जब-जब आए।उनसे तुमने भक्त बचाए।।
जिसनेकृपा तुम्हारी पाई। उसकी सबविधि से बन आई।।
संकटदूर करो मां भारी।भक्तजनों को आस तुम्हारी।।
त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी। जय-जय-जयशिव की महारानी।।
योगसिद्धि पावें सब योगी। भोगेंभोग महा सुख भोगी।।
कृपातुम्हारी पाके माता। जीवनसुखमय है बन जाता।।
दुखियोंको तुमने अपनाया। महा मूढ़ जोशरण न आया।।
तुमनेजिसकी ओर निहारा। मिलीउसे संपत्ति, सुख सारा।।
आदिशक्ति जय त्रिपुर प्यारी।महाशक्ति जय-जय, भयहारी।।
कुलयोगिनी, कुंडलिनी रूपा। लीला ललिते करेंअनूपा।।
महा-महेश्वरी, महाशक्ति दे। त्रिपुर-सुन्दरीसदा भक्ति दे।।
महामहा-नन्दे कल्याणी। मूकों को देती होवाणी।।
इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी। होतातब सेवा अनुरागी।।
जो ललिते तेरा गुण गावे।उसे न कोई कष्टसतावे।।
सर्वमंगले ज्वाला-मालिनी। तुम हो सर्वशक्तिसंचालिनी।।
आयामां जो शरण तुम्हारी।विपदा हरी उसी कीसारी।।
नामाकर्षिणी, चिंता कर्षिणी। सर्व मोहिनी सबसुख-वर्षिणी।।
महिमातव सब जग विख्याता।तुम हो दयामयी जगमाता।।
सब सौभाग्य दायिनी ललिता। तुम हो सुखदाकरुणा कलिता।।
आनंद, सुख, संपत्ति देती हो। कष्टभयानक हर लेती हो।।
मन से जो जनतुमको ध्यावे। वह तुरंत मनवांछित पावे।।
लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली।तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।।
मूलाधार, निवासिनी जय-जय। सहस्रारगामिनी मां जय-जय।।
छ: चक्रों को भेदने वाली।करती हो सबकी रखवाली।।
योगी, भोगी, क्रोधी, कामी। सब हैं सेवकसब अनुगामी।।
सबकोपार लगाती हो मां। सबपर दया दिखाती होमां।।
हेमावती, उमा, ब्रह्माणी। भण्डासुर की हृदय विदारिणी।।
सर्वविपति हर, सर्वाधारे। तुमनेकुटिल कुपंथी तारे।।
चन्द्र-धारिणी, नैमिश्वासिनी। कृपा करो ललितेअधनाशिनी।।
भक्तजनोंको दरस दिखाओ। संशयभय सब शीघ्र मिटाओ।।
जो कोई पढ़े ललिताचालीसा। होवे सुख आनंदअधीसा।।
जिसपर कोई संकट आवे।पाठ करे संकट मिटजावे।।
ध्यानलगा पढ़े इक्कीस बारा।पूर्ण मनोरथ होवे सारा।।
पुत्रहीनसंतति सुख पावे। निर्धनधनी बने गुण गावे।।
इस विधि पाठ करेजो कोई। दु:खबंधन छूटे सुख होई।।
जितेन्द्रचन्द्र भारतीय बतावें। पढ़ें चालीसा तोसुख पावें।।
सबसेलघु उपाय यह जानो।सिद्ध होय मन मेंजो ठानो।।
ललिताकरे हृदय में बासा।सिद्धि देत ललिता चालीसा।।
।।दोहा।।
ललितेमां अब कृपा करोसिद्ध करो सब काम।
श्रद्धासे सिर नाय करेकरते तुम्हें प्रणाम।।
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